मैं घंटों उसे पढ़ते हुए देख सकता हूँ
वो कहानियाँ पढ़ती है,
मैं उसे पढ़ सकता हूँ!
उन पन्नों के किरदार उसके चेहरे पर अक्सर आते- जाते हैं
होठों को दांतों में दबाए जब वो उँगलियों से बालों के छल्ले बनाती है
तो शायद वो भी उनमें कहीं उलझ जाते हैं
ऐसे में गर तेज़ आवाज़ में पुकार लो उसे
तो घबराकर यूँ देखती है जैसे ज़ोर से गिरी हो आसमां से कहीँ
फिर अपनी ही नादानियों पर शर्माके मुस्कुराती है
मैं इस मुस्कुराहट के लिए उसे अनगिनती बार पुकार सकता हूँ,
वो कहानियाँ पढ़ती है,
मैं उसे पढ़ सकता हूँ!!
अपर्णा त्रिपाठी