इस मायूस ठण्ड में भी मेरे कलम की स्याही जम गई है
अलसा के सारे जज़्बात रजाई में जा छुपे हैं
झकझोरती नहीं है स्कूल में एक बच्चे की हत्या
अस्पताल में मरीज़ की मौत के बाद लाखों का बिल
ख़ून नहीं खौलाती देशभक्ति के नाम पर धार्मिक उन्माद की खबरें
बलात्कार, बेरोज़गारी, किसानों की आत्महत्या
लोगों के नसों में दौड़ते खून को भयावह ख़बरों ने जमा दिया है
ना जाने और कितनी “साप्ताहिक क्रांतियाँ ” चाहिए
फिर से उबाल लाने के लिए
अपर्णा त्रिपाठी©